आयु का प्रमाण पत्र न होने पर मेडिकल टेस्ट में पीड़िता को नहीं माना जा सकता बालिग :दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने नाबालिग से दुष्कर्म के मामले में दोषियों की अपील याचिका खारिज करते हुए कहा कि अगर नाबालिग के पास जन्म या स्कूल प्रमाण पत्र नहीं है और उसका हड़ी परीक्षण किया गया है, तो सीमावर्ती नाबालिग पीड़िता को बालिग मानना पॉक्सो अधिनियम का उद्देश्य नहीं हो सकता है।
जस्टिस जसमीत सिंह की बेंच ने कहा कि पॉक्सो अधिनियम के तहत पीड़ित बच्चे की आयु का निर्धारण करने के लिए बोन ऑसिफिकेशन टेस्ट 15 से 17 वर्ष के बीच की आयु को मानता है, ऐसे में अदालत को कम उम्र के पक्ष पर विचार करना चाहिए।
हाई कोर्ट बेंच ने उक्त टिप्पणी करते हुए नाबालिग से दुष्कर्म के मामले में आरोपी व्यक्ति व महिला की निचली अदालत के आदेश के खिलाफ अपील खारिज कर दी। अपीलकर्ता व्यक्ति को निचली अदालत ने 31 जनवरी 2020 को पॉक्सो अधिनियम की धारा-6 के तहत नाबालिग से यौन उत्पीड़न 'करने का दोषी करार दिया था।
महिला को पॉक्सो अधिनियम की धारा 16 के तहत पुरुष द्वारा किए अपराध को उकसाने और सहायता करने का दोषी करार देते हुए 10-10 साल के सश्रम कारावास व दस-दस हजार के जुर्माने की सजा सुनाई थी।
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